इ॒हेन्द्रा॒ग्नी उप॑ ह्वये॒ तयो॒रित्स्तोम॑मुश्मसि। ता सोमं॑ सोम॒पात॑मा॥
ihendrāgnī upa hvaye tayor it stomam uśmasi | tā somaṁ somapātamā ||
इ॒ह। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। उप॑। ह्व॒ये॒। तयोः॑। इत्। स्तोम॑म्। उ॒श्म॒सि॒। ता। सोम॑म्। सो॒म॒ऽपात॑मा॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब इक्कीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में इन्द्र और अग्नि के गुण प्रकाशित किये हैं-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
तत्रेन्द्राग्निगुणा उपदिश्यन्ते।
इह यौ सोमपातमाविन्द्राग्नी सोमं रक्षतस्तावहमुपह्वये तयोरिच्च स्तोमं वयमुश्मसि॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)विसाव्या सूक्तात सांगितलेल्या बुद्धिमान लोकांच्या पदार्थविद्येच्या सिद्धीसाठी वायू व अग्नी मुख्य कारण आहेत. हा अभिप्राय जाणण्याने पूर्वोक्त विसाव्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर एकविसाव्या सूक्ताच्या अर्थाचा मेळ घातला पाहिजे.